पुरे देश में नोट बंदी के चक्कर मैं मंदी छा जाने वाली अफवांहे तेजी से रफ़्तार पकड़ चुकी है, मगर मंदी है कँहा , किसी को नहीं पता , बल्कि मेरे हिसाब से तो बहुत सी वस्तुओं के दामों मैं भारी रूप से बड़ोत्तरी देखी जा रही है.
Stepping Step
Progress in one's life gives a person the caliber to do something for the others.
Sunday, December 11, 2016
घर और दुकान, नहीं हो रहे हैं सस्ते -Delhi And NCR
Monday, August 22, 2016
प्रॉपर्टी मैं निवेश का सुनहरा अवसर -
आजकल बहुत से छोटे छोटे बिल्डर फ्री होल्ड जमीन को लैंड यूज चेंज करके और सम्बंधित कार्यालय से नक्शा पास कराके छोटे -छोटे विला बना रहे , जिसका साइज़ 70 sqd से लेकर 95 sqd तक है, जिसमे कार पार्किंग के साथ साथ दो मंजिल तक बिल्डिंग बनी होती है , कीमत 35 Lac to 60 Lac . निर्भर करता है कि विला का साइज क्या है और उसकी लोकेसन क्या है.
बड़े -बड़े नामी बिल्डर से कंही बहुत सस्ता।
Friday, June 11, 2010
खून बेचो या किडनी-धंधा चाहिए. तारकेश्वर गिरी.
Monday, April 19, 2010
सुबह -सुबह ही सर पे पेशाब और toilet टपकता है.
सुबह -सुबह ही सर पे पेशाब और toilet टपकता है। माफ़ी चाहूँगा सुबह - सुबह ऐसे शब्दों को लिखते हुए। मगर क्या करू बहुत दिनों से सोच रहा था की इस विषय पर कुछ लिखू , और अभी ऑफिस जाने के लिए भी तैयार होना है, ऑफिस का नाम आते ही दिल्ली का पुराना रेलवे पुल (पुरानी दिल्ली ) की सीन दिमाग मैं आ जाती है। ये पुल जिसको ब्रिटिश सरकार ने ट्रेनों के आने जाने के लिए यमुना नदी पर बनवाया था । ट्रेनों के साथ -साथ उस पर छोटे वाहनों के आने - जाने की भी व्यस्था भी है।
लेकिन आज बदलते समय मैं उसकी देख रेख कोई भी नहीं कर रहा है। देख -रेख के आभाव मैं उसकी हालत इनती जर्जर हो चुकी है की मैं क्या लिखू। सुबुह - सुबह दूर -दूर से ट्रेने आती है, उन ट्रेने पर बैठे हुए यात्रियों की नीद खुलती है तो उन्हें शोचालय नज़र आता है, और जैसे ही यात्री शौचालय का इस्तेमाल करते हैं तो सारा का सारा मॉल पुल के नीचे जा रहे लोगो के सर पर टपकने लगता है।
सोचिये की क्या हाल होता है बेचारो का एक तो यमुना नदी मैं बहते हुए पानी की बदबू और उपर से सर पे टपकता हुआ मल -मूत्र।
Sunday, April 18, 2010
इतनी ठंडी , भाई वाह! मजा आ गया.
Tuesday, February 2, 2010
उफ़ ये दिल्ली की गर्मी।
और गर्मी आये भी क्यों नहीं जब दिल्ली और दिल्ली के आसपास इतने सारे पेड़ विकास के नाम पर काटे जायेंगे तो क्या होगा। खेल के चक्कर मैं दिल्ली के पर्यावरण का पूरा का पूरा खेल ही बिगड़ गया है।
Thursday, December 3, 2009
एक जंगल ये भी है
बात दिल्ली की है, दिलशाद गार्डेन से कश्मीरी गेट तक, अक्षरधाम से गाजीपुर तक , गाजीपुर से दिलशाद गार्डेन तक, फ्लाई ओवर बनाने के चक्कर में ८० प्रतिशत तक पेड़ो को काट दिया गया है, अधिकारी चाहते और दिमाग से काम लेते तो तो शायद बड़ी मात्रा में पेड़ो को बचाया जा सकता था। आप लोग ख़ुद भी देख सकते हैं ऐसी -ऐसी जगह से पेड़ो को काटा गया हैं , जो निर्माण स्थल से काफी दूर हैं उन्हें भी रास्ते से हटा दिया गया है। दिलशाद गार्डेन से ले कर के गाज़ियाबाद के मोहन नगर के बीच में सैकड़ो की संख्या में बड़े और पुराने पेड़ो को काट दिया गया है,
आप में से कई लोग प्रतिदिन इन रास्तो से आते जातें होंगे , मगर क्या आप ने कभी सोचा की ये क्या हो रहा है।