सुबह -सुबह ही सर पे पेशाब और toilet टपकता है। माफ़ी चाहूँगा सुबह - सुबह ऐसे शब्दों को लिखते हुए। मगर क्या करू बहुत दिनों से सोच रहा था की इस विषय पर कुछ लिखू , और अभी ऑफिस जाने के लिए भी तैयार होना है, ऑफिस का नाम आते ही दिल्ली का पुराना रेलवे पुल (पुरानी दिल्ली ) की सीन दिमाग मैं आ जाती है। ये पुल जिसको ब्रिटिश सरकार ने ट्रेनों के आने जाने के लिए यमुना नदी पर बनवाया था । ट्रेनों के साथ -साथ उस पर छोटे वाहनों के आने - जाने की भी व्यस्था भी है।
लेकिन आज बदलते समय मैं उसकी देख रेख कोई भी नहीं कर रहा है। देख -रेख के आभाव मैं उसकी हालत इनती जर्जर हो चुकी है की मैं क्या लिखू। सुबुह - सुबह दूर -दूर से ट्रेने आती है, उन ट्रेने पर बैठे हुए यात्रियों की नीद खुलती है तो उन्हें शोचालय नज़र आता है, और जैसे ही यात्री शौचालय का इस्तेमाल करते हैं तो सारा का सारा मॉल पुल के नीचे जा रहे लोगो के सर पर टपकने लगता है।
सोचिये की क्या हाल होता है बेचारो का एक तो यमुना नदी मैं बहते हुए पानी की बदबू और उपर से सर पे टपकता हुआ मल -मूत्र।