चाहे कुछ भी हो, धंधा चाहिए तो चाहिए। चाहे खून बेचो या चाहे किडनी, इस से क्या मतलब । ये शब्द है प्राइवेट बीमा कंपनी में काम करने वाले मैनेजेर साहेब लोगो के। उनके अधीन काम करने वाले लोगो की नीद खुली नहीं की डर सा छा जाता है दीमाग के उपर। की अभी बॉस का फ़ोन ना आ जाये। और ये हकीकत है जब तक ये बेचारे चाय -वाय पीते हैं उसी समय बॉस का नंबर मोबाइल पर धड़कन देने लगता है की अब सुबह ही सुबह बोलू तो क्या बोलू। बॉस पूछता है की आज का धंधा बतावो (धंधा शब्द इन्सुरंस कंपनी में पोलिसी के लिए इस्तेमाल किया जाता है)।
बेचारे सुबह -सुबह किसी तरह से निपट कर के समय से ऑफिस पहुचने की कोशिश करते हैं , थोडा बहुत जाम से निपटते हुए ऑफिस में जैसे ही घुसते हैं , उसी समय बॉस मीटिंग के लिए सबको बुला लेता है। मीटिंग में सीधे धमकी दी जाती है वो भी उन सारे शब्दों के साथ , जो आज से ५० साल पहले जमीदार लोग अपने गुलामो के ऊपर इस्तेमाल करते थे । माँ और बहिन की गाली तो आम है।
गाली के अलावा हमेशा नौकरी से निकाल दिए जाने का खतरा सर पे मंडराता रहता है । इस चक्कर में फर्जी पोलिसी भी डालने से बाज नहीं आते। वेतन जितना भी मिलता है उसका २५-३० % अपने दोस्तों की पोलिसी लेने में ख़त्म कर देते हैं।
कस्टमर की रोज -रोज की गोली से तंग बेचारा करे तो क्या करे। बॉस के सामने किया हुआ प्रोमिस रोज फेल हो जाता है। बेचारा रात को गिरता पड़ता १०-११ बजे घर पहुंचता है तो बीबी की दुत्कार। बछो का होम वर्क। फिर वही कल वाली सुबह।
सादर वन्दे |
ReplyDeleteजीना इसी का नाम है ! रोजमर्रा के जीवन में पिसते भारतीय मानव की सच्छी दास्तान|
रत्नेश त्रिपाठी
Mujhe wo gaanaa yaad aa gayaa Giri sahaab;
ReplyDeleteJo hamne daastaa apnee sunaai , aap kyon roye.....
:-)
ReplyDeleteगिरी भाई, ऐसी कंपनिया खून चूसने को हमेशा आतुर रहती हैं. दरअसल लोगो की दुखती राग इनके हाथ में होती है, बस यह उस राग को दबाते रहते हैं. और इनके यहाँ काम करने वाला बेचारा घुट-घुट के मर जाता है. यह एक तरह की बंधुआ मजदूरी है जनाब.
jeena hai to kuch bhi kar rahe hain sammaan to bech hi denge...shiksha hi galat di ja rahi hai...
ReplyDeleteGiri Sahab apne blog me katu satya likha hai,per iske jimedar hum log hi hain,Boss kya asman se gira hua farista hai?wo bhi humre apke bich ka hi insaan hai isliye us se darne ki jarurat nahi hai,datkar mukabla kijey?Chaplusi karna band kariye,jo hakikat ho use sabke samne meeting me boliye,dekhiyga tasveer badal jayegi.
ReplyDeleteGandhi ji ne kaha tha" Atyachar karne se bada papi atyachar sahne wala hota hai"
Hum hindustani aaj bhi Gulami ki mansikta pale hue hain,kabhi bhi kisi nazayz baat pe jamkar ya khul kar virodh nahi karte,Hamesha compromise ki sochte hain....To bhaiya jab khud hi kayar ho to dusra apka iss kamsjori ka fayada to uthayega hi...Agar Himmat hai to kal morning me jab boss ka phone aaye to aap bolo sir ye mere office ka time nahi hai office ki baat office me hogi....
aap log sochenge ki mai aap logon ko bargala raha hoon.aisa nahi hai.mai apne office Time se jata hoon aur out timing se 1 Minut bhi extra nahi ruk sakta.agar jabrdsati rokne ki koshis ki jati hai resignation table pe hota hai.isliye mujhe koi problem nahi hoti kyonki mai apne usulon pe chalta hoon.
Haan ek baat aur dhayn rakiyega
Jitni jarurat apko hai job ki us se adhik jarurat company ko hoti hai apki.Lekin kuch kamjor,kayar,bujdil,ridhvihin,chaplus insaan iss tarah ka mahol banye hue hai aur apna shoshan karwate hai aur dusron ke liye bhi pareshani paida karte hain
Dhanybad
भौतिकवाद अभी और न जाने क्या-क्या करवाएगा।अब वक्त है चेत जाओ और परोपकारी हिन्दू संसकृति को आगे बढ़ाओ।
ReplyDeleteहमारी शिक्षा व्यवस्था में ज्यादातर लोग सिर्फ डिग्री के लिए पढ़ते हैं... तो ऐसे धंधे जबरन होते रहेंगे.
ReplyDeleteऐसे बॉस चपरासी के योग्य भी नहीं होते और हैवानियत का व्यापार करने वाले लोग इसी हैवानियत के चरित्र प्रमाणपत्र के आधार ऐसे लोगों को बॉस बनाते हैं ,ऐसे लोगों को जहाँ मौका मिले सरेआम जूतों से पीटना चाहिए और सामाजिक स्तर पर इनकी पोल खोलनी चाहिए ,ऐसे लोग इंसानियत के सबसे बरे दुश्मन हैं ऐसे लोगों के बारे में हर किसी को ब्लॉग पर लिखना चाहिए | ऐसे लोगों से पूरे समाज को बचाने का प्रयास निडर होकर करना चाहिए | गिरी जी आपका बहुत-बहुत धन्यवाद ऐसे हैवानो के बारे में ब्लॉग के माध्यम से लोगो को बताने के लिए ,ऐसे ही प्रयास को सार्थक ब्लोगिंग कहते हैं |
ReplyDeleteआपका यह बहुत बड़ा कदम है
ReplyDeleteSAHI KAHA..
ReplyDeleteभाई तारकेश्वर गिरी ने बुरक़े और परदे के बारे में लिखकर सवाल भेजा तो भाई रजत मल्होत्रा ने उसे पढ़कर मौलाना को सुनाया।
ReplyDeleteमौलाना ने जवाब दिया -‘ नबी स. के ज़माने बुरक़ा नहीं था। हनफ़ी आलिम कहते हैं कि तीन चीज़ें Exempted हैं-
1- वज्ह यानि चेहरा
2- कफ़्फ़ैन यानि दोनों हाथ गटटों तक
3- क़दमैन यानि दोनों पैर टख़नों तक
‘ख़ातूने इस्लाम‘ में मैंने इस पर लिखा है।
http://blogvani.com/blogs/blog/15882
vote hamne chautha kiya tha sham ko .
ReplyDeleteNice post hai ji ye sarasar .
ReplyDeleteबहुत सुन्दर लिखा है आपने! लाजवाब प्रस्तुती!
ReplyDeleteमैं ज्यादा तो नहीं जानता इस विषय में, मगर भैया को मजबूरन बीमा का रास्ता छोड़ना ही पड़ा.....पत्रकारिता का भी यही हाल है....हम मौत की खबरे भी मसाला लगाकर बेचते हैं.....अच्छा आलेख....
ReplyDeleteबैठक पर न तो लेख भेजते हैं, न टिप्पणी करते हैं....क्या नाराज़गी है भाई.....
बड़ी करुण कथा है!
ReplyDeletebadi sahi baat kahi aapne..........:)
ReplyDeleteacha laga pad kar... sahi likha hai aapne...
ReplyDeleteMeri Nayi Kavita par aapke Comments ka intzar rahega.....
A Silent Silence : Ye Kya Hua...
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काश आपकी बात उचित लोगों तक पहुँच जाये । और कुछ तो सुधार हो
ReplyDeletebilkul sahee kaha aapne... na jane kab tak ye pampara badalee jayegee...
ReplyDeleteaesi companyo par kab lagaam lagegi.nahi to ye log aise hi logon ka khoon choste rahenge.
ReplyDeletehttp://vkkaushik1.blogspot.com
बहुत अच्छा लिखा है..शायद एक-आध भी सुधर सके तो आपकी मेहनत सफल....अच्छी प्रस्तुति...
ReplyDeleteलाजवाब प्रस्तुती !
ReplyDeleteसुंदर पोस्ट ..अच्छा लगा
ReplyDeleteकिसी सुबह बॉस के ही घर पहुंच जाओ। उनके परिजनों की किडनी का बीमा कराने।
ReplyDeleteअगर आप पूर्वांचल से जुड़े है तो आयें, पूर्वांचल ब्लोगर्स असोसिएसन:पर ..आप का सहयोग संबल होगा पूर्वांचल के विकास में..
ReplyDeleteप्रिय दोस्तों! क्षमा करें.कुछ निजी कारणों से आपकी पोस्ट/सारी पोस्टों का पढने का फ़िलहाल समय नहीं हैं,क्योंकि 20 मई से मेरी तपस्या शुरू हो रही है.तब कुछ समय मिला तो आपकी पोस्ट जरुर पढूंगा.फ़िलहाल आपके पास समय हो तो नीचे भेजे लिंकों को पढ़कर मेरी विचारधारा समझने की कोशिश करें.
ReplyDeleteदोस्तों,क्या सबसे बकवास पोस्ट पर टिप्पणी करोंगे. मत करना,वरना......... भारत देश के किसी थाने में आपके खिलाफ फर्जी देशद्रोह या किसी अन्य धारा के तहत केस दर्ज हो जायेगा. क्या कहा आपको डर नहीं लगता? फिर दिखाओ सब अपनी-अपनी हिम्मत का नमूना और यह रहा उसका लिंक प्यार करने वाले जीते हैं शान से, मरते हैं शान से
श्रीमान जी, हिंदी के प्रचार-प्रसार हेतु सुझाव :-आप भी अपने ब्लोगों पर "अपने ब्लॉग में हिंदी में लिखने वाला विजेट" लगाए. मैंने भी लगाये है.इससे हिंदी प्रेमियों को सुविधा और लाभ होगा.क्या आप हिंदी से प्रेम करते हैं? तब एक बार जरुर आये. मैंने अपने अनुभवों के आधार आज सभी हिंदी ब्लॉगर भाई यह शपथ लें हिंदी लिपि पर एक पोस्ट लिखी है.मुझे उम्मीद आप अपने सभी दोस्तों के साथ मेरे ब्लॉग एक बार जरुर आयेंगे. ऐसा मेरा विश्वास है.
क्या ब्लॉगर मेरी थोड़ी मदद कर सकते हैं अगर मुझे थोडा-सा साथ(धर्म और जाति से ऊपर उठकर"इंसानियत" के फर्ज के चलते ब्लॉगर भाइयों का ही)और तकनीकी जानकारी मिल जाए तो मैं इन भ्रष्टाचारियों को बेनकाब करने के साथ ही अपने प्राणों की आहुति देने को भी तैयार हूँ.
अगर आप चाहे तो मेरे इस संकल्प को पूरा करने में अपना सहयोग कर सकते हैं. आप द्वारा दी दो आँखों से दो व्यक्तियों को रोशनी मिलती हैं. क्या आप किन्ही दो व्यक्तियों को रोशनी देना चाहेंगे? नेत्रदान आप करें और दूसरों को भी प्रेरित करें क्या है आपकी नेत्रदान पर विचारधारा?
यह टी.आर.पी जो संस्थाएं तय करती हैं, वे उन्हीं व्यावसायिक घरानों के दिमाग की उपज हैं. जो प्रत्यक्ष तौर पर मनुष्य का शोषण करती हैं. इस लिहाज से टी.वी. चैनल भी परोक्ष रूप से जनता के शोषण के हथियार हैं, वैसे ही जैसे ज्यादातर बड़े अखबार. ये प्रसार माध्यम हैं जो विकृत होकर कंपनियों और रसूखवाले लोगों की गतिविधियों को समाचार बनाकर परोस रहे हैं.? कोशिश करें-तब ब्लाग भी "मीडिया" बन सकता है क्या है आपकी विचारधारा?
लीगल सैल से मिले वकील की मैंने अपनी शिकायत उच्चस्तर के अधिकारीयों के पास भेज तो दी हैं. अब बस देखना हैं कि-वो खुद कितने बड़े ईमानदार है और अब मेरी शिकायत उनकी ईमानदारी पर ही एक प्रश्नचिन्ह है
ReplyDeleteमैंने दिल्ली पुलिस के कमिश्नर श्री बी.के. गुप्ता जी को एक पत्र कल ही लिखकर भेजा है कि-दोषी को सजा हो और निर्दोष शोषित न हो. दिल्ली पुलिस विभाग में फैली अव्यवस्था मैं सुधार करें
कदम-कदम पर भ्रष्टाचार ने अब मेरी जीने की इच्छा खत्म कर दी है.. माननीय राष्ट्रपति जी मुझे इच्छा मृत्यु प्रदान करके कृतार्थ करें मैंने जो भी कदम उठाया है. वो सब मज़बूरी मैं लिया गया निर्णय है. हो सकता कुछ लोगों को यह पसंद न आये लेकिन जिस पर बीत रही होती हैं उसको ही पता होता है कि किस पीड़ा से गुजर रहा है.
मेरी पत्नी और सुसराल वालों ने महिलाओं के हितों के लिए बनाये कानूनों का दुरपयोग करते हुए मेरे ऊपर फर्जी केस दर्ज करवा दिए..मैंने पत्नी की जो मानसिक यातनाएं भुगती हैंथोड़ी बहुत पूंजी अपने कार्यों के माध्यम जमा की थी.सभी कार्य बंद होने के, बिमारियों की दवाइयों में और केसों की भागदौड़ में खर्च होने के कारण आज स्थिति यह है कि-पत्रकार हूँ इसलिए भीख भी नहीं मांग सकता हूँ और अपना ज़मीर व ईमान बेच नहीं सकता हूँ.